लद्दाख में हिंसक प्रदर्शन: राज्य का दर्जा और संवैधानिक सुरक्षा की मांग

लेह, 25 सितंबर 2025: लद्दाख में 24 सितंबर को हिंसक प्रदर्शन ने पूरे क्षेत्र और देश का ध्यान खींचा। यह आंदोलन लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग को लेकर चल रहा था। प्रदर्शन शांतिपूर्ण शुरू हुआ, लेकिन पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हुई झड़पों के कारण चार लोगों की मौत हो गई और 80 से अधिक लोग घायल हुए।
लद्दाख का ऐतिहासिक और रणनीतिक महत्व
लद्दाख का इतिहास स्वतंत्र हिमालयी राज्य के रूप में शुरू हुआ और इसका तिब्बत के साथ गहरा सांस्कृतिक और व्यापारिक संबंध था। 19वीं सदी में इसे जम्मू और कश्मीर राज्य में शामिल किया गया। भौगोलिक रूप से यह क्षेत्र केंद्रीय एशिया और भारत के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों के बीच महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग रहा है। इसकी रणनीतिक स्थिति इसे भारत की सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों के लिहाज से अत्यंत महत्वपूर्ण बनाती है।
2019 में अनुच्छेद 370 की समाप्ति और जम्मू और कश्मीर का पुनर्गठन होने के बाद लद्दाख सीधे केंद्र के नियंत्रण में आया। इससे स्थानीय लोगों में संवैधानिक सुरक्षा और स्वायत्तता को लेकर असंतोष बढ़ा।
24 सितंबर की हिंसा
प्रदर्शनकारियों ने लेह में सड़कों पर उतरकर राज्य का दर्जा और छठी अनुसूची की मांग की। हिंसा के दौरान भाजपा कार्यालय में आग लगी और कई पुलिस वाहन क्षतिग्रस्त हुए। पुलिस ने आंसू गैस और लाठीचार्ज का इस्तेमाल किया। हिंसा के कारण कर्फ्यू लगाया गया और शहर के कई हिस्सों में सुरक्षा बल तैनात किए गए।
सोनम वांगचुक: आंदोलन का चेहरा
10 सितंबर 2025 को वांगचुक ने लद्दाख को छठी अनुसूची में शामिल करने और राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर भूख हड़ताल शुरू की। हालांकि 24 सितंबर की हिंसा के बाद उन्होंने अपनी भूख हड़ताल समाप्त की और युवाओं से शांति बनाए रखने की अपील की।
सोनम वांगचुक एक शिक्षाविद्, पर्यावरण कार्यकर्ता और मेकेनिकल इंजीनियर हैं। उन्होंने 1988 में SECMOL (Students’ Educational and Cultural Movement of Ladakh) की स्थापना की, जिसका उद्देश्य लद्दाख के सरकारी स्कूलों में सुधार करना है। वांगचुक का जीवन बॉलीवुड फिल्म ‘थ्री इडियट्स’ में दिखाए गए किरदार से प्रेरित माना जाता है।
केंद्र सरकार की प्रतिक्रिया
केंद्र सरकार ने हिंसा के लिए वांगचुक के बयानों को जिम्मेदार ठहराया। मंत्रालय ने कहा कि लद्दाख के लिए पहले ही कई कदम उठाए जा चुके हैं, जैसे अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण बढ़ाना, परिषदों में महिलाओं को 1/3 आरक्षण देना और स्थानीय भाषाओं को आधिकारिक मान्यता देना।
लद्दाख की इस हिंसा ने स्थानीय लोगों की संवैधानिक सुरक्षा और स्वायत्तता की मांग को उजागर किया है। शांति और संवाद के माध्यम से समाधान खोजने की आवश्यकता है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं से बचा जा सके और लद्दाख का विकास सुरक्षित ढंग से हो सके।