माँ लक्ष्मी जी की आरती — रीति, महत्व और दिवाली पर उनकी पूजा की विधि

दिवाली के पावन अवसर पर माँ लक्ष्मी की आरती और पूजा का विशेष महत्व है। यह न केवल धन-समृद्धि की कामना का अनुष्ठान है बल्कि मनोवैज्ञानिक, सामाजिक और आध्यात्मिक रूप से भी जीवन को संतुलित करने वाला अभ्यास है। नीचे विस्तृत रूप में आरती, इतिहास, पूजा-प्रक्रिया, प्रसाद-विधि, क्षेत्रीय रीतियाँ और आधुनिक संदर्भ दिए गए हैं — ताकि पाठक पूजा को सही भावना और विधि के साथ कर सकें।


माँ लक्ष्मी जी की आरती — रीति, महत्व और दिवाली पर उनकी पूजा की विधि

ॐ जय लक्ष्मी माता, मैया जय लक्ष्मी माता।
तुमको निशदिन सेवत, हर विष्णु विधाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥

उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥

दुर्गा रूप निरंजन, सुख सम्पत्ति दाता।
जो कोई तुमको ध्यावत, ऋद्धि-सिद्धि पाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥

तुम पाताल निवासिनी, तुम ही शुभदाता।
कर्म-प्रभाव प्रकाशक, जग में विख्याता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥

जिस घर में तुम रहो, तहाँ सब कुछ पाता।
सब सम्भव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥

तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न कोई पाता।
खीर प्रसाद न मिलता, तिलक न लगाया जाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥

भक्त तुम्हारे जो कोई, ध्यावे मन लाता।
रिद्धि-सिद्धि सुख-सम्पत्ति, घर में भर जाता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥

जो आरती जो कोई गावे, मनवांछित फल पाता।
उदित हो सुख सम्पत्ति, मन में नहीं संताप आता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता॥


ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्त्व

माँ लक्ष्मी को वैदिक तथा पुराणिक परंपराओं में धन, ऐश्वर्य, सौभाग्य और समृद्धि की देवी माना गया है। पुराणों में उनके विभिन्न अवतारों और लीलाओं का वर्णन मिलता है — जिन्हें सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा और जीवन की सम्पन्नता का प्रतीक माना गया। समय के साथ, विशेषकर व्यापारिक समुदायों और घरों में नववर्ष के आरंभ, फसल कटाई, तथा दीपावली जैसे अनुष्ठानों से उनकी पूजा जुड़ती गई।


दिवाली पर पूजा का आध्यात्मिक एवं सामाजिक महत्व

  • आध्यात्मिक अर्थ: दीपावली का प्रकाश अन्धकार पर विजय का प्रतीक है; लक्ष्मी पूजन से मन की अज्ञानता, लोभ और मानसिक अव्यवस्था से मुक्ति की कामना की जाती है।
  • सामाजिक-आर्थिक अर्थ: पारंपरिक रूप से व्यापारियों द्वारा दिवाली पर खाता-बन्द (वर्षीय लेखा समापन) और नए लेख की शुरुआत की परंपरा है; माँ लक्ष्मी की पूजा को आर्थिक सफलता और नैतिक व्यापार की दिशा से जोड़ा गया है।
  • घरेलू अर्थ: घरेलू शुद्धता, आतिथ्य और सद्भाव का संकेत — यह माना जाता है कि स्वच्छ और स्वागतयोग्य घरों में ही देवी का वास होता है।

पूजा-सामग्री और तैयारी (विधि सहित)

आवश्यक सामग्री: दीपक (घी या तेल), अगरबत्ती, रोली/कुमकुम, अक्षत (चावल), फूल, मीठा प्रसाद (खीर/लड्डू), नैवेद्य, चन्दन, कुलदेवता का चिन्ह या लक्ष्मी-मूर्ति/चित्र।

पुजारी या घर पर करने का सामान्य क्रम:

  1. घर की सफाई और चौकी/मण्डप की सजावट।
  2. पूजा स्थल पर साफ कपड़ा बिछाकर देवी की प्रतिमा/चित्र स्थापित करें।
  3. दीप, अगरबत्ती और धूप प्रज्वलित कर ध्यान करें।
  4. आरती-संगीत/भजन के साथ आरती करें (ऊपर दी गई आरती का पाठ)।
  5. प्रसाद अर्पित कर भक्तजन बिस्कुट/खीर बाँटें और परिवार के सदस्यों के साथ धन्यवाद और भक्ति-भाव साझा करें।

विशेष टिप्स: सुबह-शाम दोनों समय लक्ष्मी-पूजा के अनुष्ठान होते हैं; परम्परागत रूप से मुख्य पूजन अँधेरा होने पर दीपों के साथ किया जाता है।


प्रसाद और उपहार-विधियाँ

लक्ष्मी पूजा के प्रसाद में मीठा (खीर, लड्डू), फल, मिठाईयाँ तथा तिल का अधिक उपयोग होता है। व्यापारी वर्ग कभी-कभी नए लेखों/खातों के साथ हल्दी-कुमकुम का चिह्न लगाकर देवी का सम्मान करते हैं। मेहमानों को प्रसाद बाँटने और गरीबों में दान देने को शुभ माना जाता है — यह समृद्धि के साथ दायित्व और सामाजिक सम्मान की भावना जोड़ता है।


क्षेत्रीय विविधताएँ और लोककथाएँ

लक्ष्मी पूजन की रीतियाँ क्षेत्रानुसार भिन्न होती हैं — कुछ स्थानों पर लक्ष्मी-नृत्य, केसरी वस्त्र अर्पण, या विशेष मण्डलीय भजन होते हैं। दक्षिण भारत में दीपावली के मेलों और विशिष्ट पकवानों के साथ पूजन देखा जाता है, जबकि उत्तर में घरों में लक्ष्मी-पूजन के बाद पटाखे और पारिवारिक भेट-विनिमय आम है। लोककथाओं में भी देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए अलग-अलग रीति-रिवाज़ मिलते हैं जो स्थानीय संस्कृति को दर्शाते हैं।


लक्ष्मी पूजन के मनोवैज्ञानिक लाभ और आधुनिक प्रासंगिकता

  • ध्यान और मन की शांति: पूजन और आरती का क्रम व्यक्ति को ध्यान की ओर लाता है, तनाव कम करता है और सकारात्मक मानसिकता बढ़ाता है।
  • सामाजिक बंधन: पारिवारिक अनुष्ठान एक साथिता का अनुभव कराते हैं, पारिवारिक मूल्यों और परंपराओं को जीवित रखते हैं।
  • प्रोफेशनल-एथिक्स: व्यापारी परंपराओं के ज़रिए व्यवसाय में नैतिकता, ईमानदारी और जिम्मेदारी की याद दिलाई जाती है।

प्रश्न: क्या लक्ष्मी पूजा केवल भौतिक समृद्धि के लिए की जाती है?
उत्तर: नहीं — पारंपरिक मान्यता में लक्ष्मी न सिर्फ भौतिक धन देंगी बल्कि सत्य, सदाचार और मन-शांति जैसे आंतरिक गुण भी प्रदान करती हैं।

प्रश्न: क्या लक्ष्मी पूजा में किसी विशेष समय का पालन जरूरी है?
उत्तर: परंपरागत रूप से अमावस्या/नवरात्रि के बाद अक्षय तृतीया और दीपावली-रात को विशेष मान्यता है; फिर भी श्रद्धा से किया गया किसी भी समय पूजन फलदायी माना जाता है।


आधुनिक व्यवहारिक सुझाव (सुविधाजनक और सुरक्षित पूजा)

  • दीपक जलाते समय बच्चे और दिये को सुरक्षित स्थान पर रखें।
  • मूर्ति-स्थापन या सजावट के दौरान न जाकर पर्यावरण के अनुकूल सामग्री (जैसे सूखे फूल, कपड़ा-आधारित सजावट) अपनाएं।
  • प्रसाद बाँटते समय स्वच्छता का ध्यान रखें।

माँ लक्ष्मी की आरती और दिवाली-पूजा केवल परंपरा नहीं; यह एक समृद्ध बहुआयामी अभ्यास है जो व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक स्तर पर सकारात्मक प्रभाव डालता है। पूजा में निहित भाव — स्वागत, शुद्धता, कृतज्ञता और नैतिक उत्तरदायित्व — समकालीन जीवन में भी उतने ही महत्व के हैं जितने प्राचीन काल में थे। आगे की दिशा में हम:

  1. पूजा को सिर्फ भौतिक कामना तक सीमित न रखकर, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक दायित्वों के साथ जोड़ें।
  2. स्थानीय परंपराओं को संरक्षित रखते हुए पर्यावरण-मित्र सामग्री अपनाएँ।
  3. समृद्धि को व्यक्तिगत लाभ न मानकर समाज के साथ बाँटने का संकल्प करें।

माँ लक्ष्मी का आशीर्वाद आप सभी पर बना रहे — जीवन में सुख, समृद्धि और मानसिक शांति बनी रहे।


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