अमेरिका की H-1B वीज़ा नीति: एक $100,000 का सवाल जो बदल सकता है भविष्य

अमेरिका की तकनीकी शक्ति का एक बहुत बड़ा आधार दुनिया भर से आए प्रतिभाशाली और कुशल पेशेवर हैं। इन पेशेवरों के लिए अमेरिका का दरवाज़ा खोलने वाली सबसे महत्वपूर्ण वीज़ा श्रेणी है – H-1B वीज़ा। पिछले कुछ समय से, यह वीज़ा सिर्फ आव्रजन चर्चाओं में ही नहीं, बल्कि अमेरिकी और भारतीय मीडिया की सुर्खियों में भी छाई हुई है। और इसकी वजह है एक प्रस्तावित नियम जो इस वीज़ा की लागत को बढ़ाकर शायद $100,000 तक कर सकता है।

आइए, विस्तार से समझते हैं कि H-1B वीज़ा क्या है, यह आज चर्चा में क्यों है, और यह प्रस्तावित $100,000 की फीस भारतीयों और अन्य देशों के नागरिकों के लिए क्या मायने रखती है।

H-1B वीज़ा अमेरिका की एक गैर-आप्रवासन (Non-Immigrant) वीज़ा श्रेणी है, जिसे विशेष पेशों (Specialty Occupations) में काम करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। सरल शब्दों में कहें तो, यह उन विदेशी पेशेवरों के लिए है जिनके पास किसी विशेष क्षेत्र में उच्च शैक्षणिक डिग्री (जैसे Bachelor’s Degree या उससे अधिक) है और एक अमेरिकी employer उन्हें नौकरी पर रखना चाहता है।

  • विशेष पेशे: मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी (IT), इंजीनियरिंग, गणित, वित्त, अनुसंधान, और स्वास्थ्य सेवा जैसे क्षेत्र आते हैं।
  • प्रक्रिया: अमेरिकी कंपनी को पहले employee के लिए आवेदन करना होता है। यह एक लॉटरी-आधारित प्रणाली है, क्योंकि हर साल के लिए कोटा (सामान्यत: 85,000 नए वीज़ा) निर्धारित है, और आवेदन इसकी तुलना में कहीं अधिक आते हैं।
  • लाभ: यह वीज़ा व्यक्ति को अमेरिका में रहकर उस sponsor कंपनी के लिए काम करने की अनुमति देता है, आमतौर पर शुरू में तीन साल के लिए, जिसे बाद में बढ़ाया भी जा सकता है।

H-1B वीज़ा हमेशा से राजनीतिक और आर्थिक बहस का केंद्र रहा है, लेकिन हाल ही में यह दो मुख्य कारणों से सुर्खियों में है:

  1. लॉटरी प्रक्रिया में बदलाव: अमेरिकी आव्रजन सेवा (USCIS) ने हाल में लॉटरी के तरीके को बदला है। पहले, एक कंपनी एक employee के लिए कई आवेदन दाखिल करके लॉटरी में जीतने की संभावना बढ़ा सकती थी। नए नियम के तहत, अब लॉटरी employee-केंद्रित है। यानी, प्रत्येक अर्हक employee का केवल एक ही entry लॉटरी में जाएगा, चाहे उसके लिए कितनी ही कंपनियों ने आवेदन क्यों न किया हो। इससे निष्पक्षता बढ़ने की उम्मीद है।
  2. प्रस्तावित फीस में भारी बढ़ोतरी ($100,000 का प्रस्ताव): यह सबसे चर्चित और चिंताजनक कारण है। अमेरिकी कांग्रेस में एक ‘High-Skilled Integrity and Fairness Act’ नाम का एक बिल प्रस्तावित है। इस बिल के मुताबिक, H-1B वीज़ा के लिए न्यूनतम वार्षिक वेतन (minimum annual wage) मौजूदा $60,000 (जो 1989 में तय किया गया था) से बढ़ाकर $100,000 किया जा सकता है। साथ ही, इस वेतन को हर साल मुद्रास्फीति (inflation) के आधार पर समायोजित भी किया जाएगा।

इस प्रस्ताव का उद्देश्य अमेरिकी workers के लिए नौकरियों की रक्षा करना और यह सुनिश्चित करना बताया जा रहा है कि H-1B workers का इस्तेमाल सस्ते श्रम के तौर पर न हो, बल्कि सच्ची प्रतिभा को आकर्षित करने के लिए हो।

अगर यह प्रस्ताव कानून का रूप ले लेता है, तो इसका भारतीयों और अन्य देशों के पेशेवरों, साथ ही अमेरिकी उद्योग पर गहरा प्रभाव पड़ेगा।

1. भारतीय पेशेवरों और छात्रों पर प्रभाव:

  • कम अवसर: $100,000 का न्यूनतम वेतन एक बहुत ऊँचा मानक है। केवल वरिष्ठ और अत्यधिक विशेषज्ञ पेशेवर ही इसके दायरे में आ पाएंगे। नए graduates या मिड-लेवल के professionals जिनके लिए यह वीज़ा मुख्य रास्ता था, उनके लिए अवसर बहुत सीमित हो जाएंगे।
  • करियर प्लानिंग में बदलाव: हज़ारों भारतीय छात्र हर साल अमेरिकी universities में पढ़ने जाते हैं, जिनका लक्ष्य पढ़ाई के बाद H-1B के जरिए नौकरी पाना होता है। इस प्रस्ताव से उनकी योजनाएँ चौपट हो सकती हैं। उन्हें अन्य देशों जैसे कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, या UK की तरफ देखने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है।
  • वेतन में वृद्धि का दबाव: जो लोग H-1B पर हैं, उन्हें अपनी कंपनियों पर यह दबाव बनाना होगा कि उनका वेतन $100,000 तक बढ़ाया जाए, नहीं तो उनके वीज़ा का नवीनीकरण (renewal) खतरे में पड़ सकता है।

2. अमेरिकी कंपनियों पर प्रभाव:

  • लागत में भारी इजाफा: IT सेवाएँ देने वाली कंपनियों (जैसे TCS, Infosys, Wipro) के लिए यह एक बहुत बड़ा झटका होगा। उनके business model का एक बड़ा हिस्सा H-1B workers पर निर्भर है। उन्हें प्रत्येक employee की लागत में भारी बढ़ोतरी झेलनी पड़ेगी, जिससे उनकी profitability पर सीधा असर पड़ेगा।
  • प्रतिभा की कमी: सिलिकॉन वैली की tech दिग्गज कंपनियों (जैसे Google, Microsoft, Apple) को भी प्रतिभा की भर्ती में मुश्किल होगी। इन कंपनियों के लिए $100,000 का वेतन कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन नए talent को hire करने की प्रक्रिया और महंगी हो जाएगी।
  • ऑफशोरिंग में वृद्धि: कंपनियाँ महंगी अमेरिकी श्रम शक्ति के बजाय काम को भारत जैसे देशों में स्थानांतरित (offshore) करना पसंद कर सकती हैं, जहाँ लागत कम है। इससे अमेरिका में ही नौकरियाँ कम हो सकती हैं, जो इस बिल के मकसद के exactly opposite है।

3. अन्य देशों के पेशेवरों पर प्रभाव:

  • सार्वभौमिक चुनौती: यह प्रस्ताव सिर्फ भारतीयों के लिए ही नहीं, बल्कि चीन, दक्षिण कोरिया, कनाडा, और यूरोप सहित सभी देशों के H-1B आवेदकों पर समान रूप से लागू होगा। सभी के लिए अवसरों की संख्या कम हो जाएगी।
  • लाभ अन्य देशों को: कनाडा जैसे देश, जो पहले से ही skilled immigrants को आकर्षित करने के लिए aggressive policies चला रहे हैं, इस स्थिति से सबसे ज्यादा लाभान्वित हो सकते हैं। वे अमेरिका से reject हुए talent को अपनी तरफ आकर्षित कर सकते हैं।

H-1B वीज़ा परिवर्तन के एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। $100,000 के वेतन का प्रस्ताव एक दोधारी तलवार की तरह है। एक तरफ, इसका उद्देश्य H-1B program में हो रहे दुरुपयोग को रोकना और अमेरिकी workers को फायदा पहुँचाना है। वहीं दूसरी तरफ, इसके गंभीर unintended consequences हो सकते हैं – जैसे अमेरिकी उद्योग को नुकसान, वैश्विक प्रतिभा का रुख मोड़ना, और भारत जैसे देशों के लाखों युवाओं के सपनों पर पानी फिरना।

फिलहाल, यह सिर्फ एक प्रस्ताव (proposal) है, इसे कानून बनने में अभी लंबा समय लग सकता है और इसमें कई बदलाव भी हो सकते हैं। लेकिन, यह दिशा स्पष्ट करती है कि अमेरिका अपने आव्रजन नियमों को और सख्त व चयनात्मक बनाना चाहता है। भारतीय पेशेवरों और छात्रों के लिए यह जरूरी है कि वे अपने भविष्य की योजना बनाते समय केवल अमेरिका पर ही निर्भर न रहें, बल्कि अन्य विकल्पों को भी actively explore करें।


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