करवा चौथ व्रत 2025: जानिए तारीख, पूजा विधि, कथा और चंद्र दर्शन का समय

नई दिल्ली, 9 अक्टूबर 2025: कल देशभर में सुहागिन महिलाएं करवा चौथ का पवित्र व्रत मना रही हैं। यह व्रत हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करते हुए पूरे दिन निर्जला उपवास रखती हैं। करवा चौथ का पर्व पति-पत्नी के बीच प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक माना जाता है।
करवा चौथ का महत्व
करवा चौथ भारतीय समाज में दांपत्य प्रेम की दृढ़ता और सौभाग्य का प्रतीक है। “करवा” का अर्थ मिट्टी का बर्तन या कलश होता है, जबकि “चौथ” का अर्थ है चौथी तिथि। यह पर्व विशेष रूप से उत्तर भारत के राज्यों—दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश—में बड़ी श्रद्धा और उत्साह से मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं अपने सुहाग की रक्षा और जीवनसाथी की लंबी आयु के लिए उपवास रखती हैं।
व्रत कौन रखता है और क्यों
करवा चौथ का व्रत मुख्य रूप से विवाहित महिलाएं रखती हैं। वे यह व्रत अपने पति की लंबी उम्र और वैवाहिक जीवन की खुशहाली के लिए करती हैं। वहीं, कुछ अविवाहित युवतियां भी यह व्रत अपने मनचाहे वर की प्राप्ति की कामना से रखती हैं। यह व्रत स्त्री की निष्ठा, समर्पण और प्रेम का प्रतीक माना जाता है।
व्रत की विधि और पूजा का तरीका
व्रत का आरंभ सूर्योदय से पहले ‘सरगी’ खाने से होता है, जो सास द्वारा दी जाती है। सरगी में फल, मिठाइयाँ, मेवे और पानी शामिल होते हैं। इसके बाद महिलाएं पूरे दिन जल और अन्न का त्याग करती हैं।
शाम को महिलाएं सोलह श्रृंगार करके सजती हैं और करवा चौथ की कथा सुनती हैं। पूजा के समय मिट्टी या तांबे के करवे में जल, धूप, दीप, रोली, चावल, मिठाई आदि रखे जाते हैं। पूजा के बाद महिलाएं एक-दूसरे को करवा देकर मंगलकामनाएं करती हैं।
रात्रि में चंद्रमा के उदय होने पर महिलाएं छलनी से पहले चंद्रमा और फिर अपने पति का चेहरा देखकर अर्घ्य देती हैं। इसके बाद पति के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत खोलती हैं।
करवा चौथ की पौराणिक कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, एक सती स्त्री ‘करवा’ अपने पति की दीर्घायु के लिए समर्पित थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान कर रहा था, तभी एक मगरमच्छ ने उसे पकड़ लिया। करवा ने अपने पति को बचाने के लिए यमराज से प्रार्थना की। उसकी पतिव्रता और निष्ठा से प्रसन्न होकर यमराज ने उसके पति को जीवनदान दिया। तभी से यह व्रत पतिव्रता स्त्रियों का प्रतीक बन गया और हर वर्ष कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चौथ को यह व्रत मनाया जाने लगा।
परंपराएं और सामाजिक महत्व
करवा चौथ न केवल धार्मिक दृष्टि से बल्कि सामाजिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व पति-पत्नी के संबंधों में विश्वास और प्रेम को गहरा करता है। महिलाएं इस दिन सोलह श्रृंगार करती हैं, नई साड़ियाँ पहनती हैं, हाथों में मेहंदी रचाती हैं और सजधजकर पूजा में शामिल होती हैं। कई जगहों पर महिलाएं समूह में कथा सुनती हैं और एक-दूसरे को करवा भेंट करती हैं, जो सौभाग्य का प्रतीक माना जाता है।
2025 में चंद्रोदय का समय
इस वर्ष यानी 2025 में 10 अक्टूबर को करवा चौथ मनाया जा रहा है। दिल्ली में चंद्रोदय का समय रात 8:11 बजे रहेगा। चंद्र दर्शन के बाद महिलाएं पूजा-अर्चना कर व्रत खोलेंगी।
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