शारदीय नवरात्रि: नौ दिनों का पावन पर्व, मां दुर्गा के नौ रूपों की अद्भुत महिमा और भगवान राम से गहरा नाता

बुलन्दशहर: चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होने वाला नवरात्रि का यह पावन पर्व पूरे देश में हर्षोल्लास के साथ मनाया जा रहा है। नवरात्रि, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘नौ रातें’, सिर्फ एक त्योहार नहीं बल्कि शक्ति की उपासना, आंतरिक शुद्धि और नए सत्र की शुरुआत का प्रतीक है। इस दौरान मां दुर्गा के नौ स्वरूपों की पूजा-अर्चना की जाती है, जिनमें ब्रह्मांड की समस्त शक्तियां निहित हैं।

जहां चैत्र नवरात्रि का संबंध नवसंवत्सर (हिंदू नव वर्ष) की शुरुआत से है, वहीं शारदीय नवरात्रि का भगवान राम के जीवन से अटूट संबंध है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब लंकापति रावण ने माता सीता का हरण किया, तब भगवान राम ने रावण से युद्ध से पूर्व मां दुर्गा की कृपा प्राप्त करने के लिए इसी शारदीय नवरात्रि में समुद्र तट पर मां की पूजा की थी।

कहा जाता है कि मां को प्रसन्न करने के लिए 108 नीलकमल के फूल चढ़ाने का संकल्प लेने के बाद भी रामजी को एक फूल कम मिला। तब भगवान राम ने अपनी एक आंख (जो कमल के समान नयन थी) मां को अर्पित करने का निश्चय किया। मां दुर्गा इस भक्ति से अत्यंत प्रसन्न हुईं और उन्होंने प्रकट होकर राम को विजय का आशीर्वाद दिया। इसके पश्चात दशमी के दिन ही रावण का वध हुआ, जिसे हम विजयादशमी या दशहरे के रूप में मनाते हैं। इसीलिए शारदीय नवरात्रि का महत्व और भी बढ़ जाता है।

  1. प्रथम दिन – मां शैलपुत्री: शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है। ‘शैल’ का अर्थ है पर्वत, अतः ये पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। इनका वाहन वृषभ (बैल) है। इस दिन घटस्थापना की जाती है और कलश स्थापित कर मां का आह्वान किया जाता है।
  2. द्वितीय दिन – मां ब्रह्मचारिणी: दूसरे दिन मां के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की आराधना की जाती है। यह नाम ‘ब्रह्म’ का अर्थ तपस्या से है। मां ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की थी। इनकी कृपा से भक्तों में तप, त्याग और सदाचार की भावना का विकास होता है।
  3. तृतीय दिन – मां चंद्रघंटा: तीसरे दिन मां चंद्रघंटा की पूजा का विधान है। इनके मस्तक पर घंटे के आकार का अर्धचंद्र है, इसीलिए इन्हें यह नाम मिला। यह शांति और सौम्यता की देवी हैं तथा साहस और निडरता प्रदान करती हैं।
  4. चतुर्थ दिन – मां कुष्मांडा: नवरात्रि के चौथे दिन मां कुष्मांडा की उपासना की जाती है। मान्यता है कि इन्होंने ही ब्रह्मांड की रचना की थी। इनके आठ हाथ हैं और इनका वाहन सिंह है। इनकी पूजा से आयु, यश, बल और आरोग्य की प्राप्ति होती है।
  5. पंचम दिन – मां स्कंदमाता: पांचवें दिन मां स्कंदमाता की पूजा का विशेष महत्व है। यह भगवान कार्तिकेय (स्कंद) की माता हैं। इनकी कृपा से मूर्ख व्यक्ति भी महाज्ञानी बन सकता है। इनकी उपासना से मोक्ष के द्वार खुलते हैं।
  6. षष्ठम दिन – मां कात्यायनी: छठे दिन मां कात्यायनी की आराधना की जाती है। ऋषि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर मां ने उनके यहाँ पुत्री के रूप में जन्म लिया था। यह दुष्टों का नाश करने वाली और भक्तों का कल्याण करने वाली हैं।
  7. सप्तम दिन – मां कालरात्रि: सातवें दिन मां कालरात्रि की पूजा होती है। यह मां दुर्गा का सबसे उग्र रूप हैं। इनका नाम ‘काल’ यानी मृत्यु का भी ‘काल’ है। यह भक्तों की सभी बुरी शक्तियों, भूत-प्रेत आदि का नाश कर देती हैं और उन्हें अभय प्रदान करती हैं।
  8. अष्टम दिन – मां महागौरी: आठवें दिन मां महागौरी की पूजा का विधान है। मां पार्वती ने कठोर तपस्या के बाद भगवान शिव को प्राप्त किया, जिससे उनका शरीर काला पड़ गया था। भगवान शिव ने प्रसन्न होकर गंगा जल से उनके शरीर को धोया, जिससे वह गौर वर्ण की हो गईं। इनकी कृपा से भक्तों के सभी पाप धुल जाते हैं।
  9. नवम दिन – मां सिद्धिदात्री: नवरात्रि के अंतिम दिन मां सिद्धिदात्री की पूजा की जाती है। यह मां दुर्गा की नौवीं और अंतिम शक्ति हैं। यह सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करने वाली हैं। भगवान विष्णु ने इनकी कृपा से ही नारायण रूप धारण किया था। इस दिन कन्या पूजन का भी विशेष महत्व है।

नवरात्रि का पर्व हमें सिखाता है कि बुराई पर अच्छाई की जीत निश्चित है, चाहे वह बाहरी संसार में हो या हमारे अपने अंदर। मां दुर्गा के इन नौ रूपों की आराधना मनुष्य को आंतरिक बल, साहस और ज्ञान प्रदान करती है। भगवान राम की कथा हमें यह प्रेरणा देती है कि धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने वाले की विजय अवश्य होती है। आइए, इस पावन अवसर पर हम सभी मां दुर्गा से प्रार्थना करें कि वह हमारे जीवन में सुख, शांति और समृद्धि प्रदान करें।

सभी पाठकों को नवरात्रि की हार्दिक शुभकामनाएं!
जय माता दी!


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